शून्य से आरंभ हुआ ;
अंत भी शून्य में
जिसका आरंभ है,
उसका अंत भी है,
जिसका अंत है ,
उसका आरंभ भी
आरंभ और अंत बीच में
कर्म की प्रधानता है,
कर्म का अकाट्य सिद्धांत है,
जिसका जैसा कर्म उसकी वैसी गति
जन्म जन्मांतर के संचित कर्म ही
हमारे सुख और दुख का कारण है,
इहलोक और परलोक
दोनों हमारे कर्म पर ही निर्भर है !
-© Sachin kumar🖋
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