वृक्ष है श्रृंगार वसुधा का
धरा पर जीवन का तुम केंद्र बिंदु
चुपचाप खड़ा तपस्या में लीन तपस्वी की तरह
खुद के लिए कभी जिया नहीं
जीव के कल्याण में किया संपूर्ण जीवन समर्पित
तुम ही हो एकमात्र स्रोत प्राण बायु का
तेरे ही छत्रछाया में गुलजार जीवन
पशु पक्षी का आवास तुम से ही
तुम से बड़ा इस जगत कोई त्यागी नहीं
संपूर्ण जीव जगत तुम पर ही आश्रित
सर्वस्व निछावर करके भी
कभी कुछ किसी से चाहा नहीं
स्वार्थ में अंधा मानव किया
तुम्हारा भरपूर दोहन
मानव ने अपनी ही विनाश का पटकथा लिख चुका
अब भी समय है चेत जाओ मूर्ख मानव
प्रत्येक मानव का अब पुनीत कर्तव्य
वृक्षारोपण से ही कल्याण संपूर्ण विश्व का !
~ © Sachin kumar
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