गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

पल




पल में प्रेम
पल में द्वेष
पल में खुशी
पल में दुखी
पल में स्तुति
पल में निंदा
पल में सरस
पल में नीरस
पल में बंधन
पल में मोक्ष
पल में अनुराग
पल में विराग
पल में आकर्षण
पल में विकर्षण
पल में आशा
पल में निराशा

पलों में सिमटी हुई जीवन के बीच संतुलन ही जिंदगी को सुंदर बनाती हैं.... !!!
                   -©Sachin kumar 🖋


चंचल मन

   
कभी मन में उठे प्रेम तरंग,
कभी मन में उठता क्रोध ज्वार,
कभी मन विद्रोही हो जाए,
कभी मन दया में द्रवित हो,
कभी मन में अहंकार का भाव जगे,
कभी मन प्रफुल्लित हो  जाए,
कभी मन में उपजे दिव्य ज्ञान,
कमी मन ये बुने गीत काव्य,
कभी मन  कुंठा से भर जाए,
कभी मन हो जाए बावरा,
कभी मन ही मन को समझाए,
कभी मन ही मन से बात करें,
कभी मन विचलित हो जाए,
कभी मन अतीत में खो जाए, 
कभी मन जल सा निर्मल हो,
कभी मन भाव विभोर हो जाए, 
कभी मन ईश्वर में लीन भायो,
कभी मन श्रद्धा में नमन करें,
कभी मन अनंत में विचरण करें,
कभी मन चिर शांति में  लीन रहे,
कभी मन में गहरे राज छिपे,
कभी मन प्रकृति में रमन करें,
कभी मन भविष्य की चिंता में व्याकुल हो जाए,

संपूर्ण धरा मन का ही सृजन,
जो इस चंचल मन को रखे काबू में,
वही विजेता कहलाए....!!!

              -© Sachin Kumar ✒

#मन
#चंचल














     
         
 
       
         
          -©Sachin Kumar ✒






















मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

वृक्ष







वृक्ष है श्रृंगार वसुधा का
धरा पर जीवन का तुम केंद्र बिंदु
चुपचाप खड़ा तपस्या में लीन तपस्वी की तरह
खुद के लिए कभी जिया नहीं
जीव के कल्याण में किया संपूर्ण जीवन समर्पित
तुम ही हो एकमात्र स्रोत प्राण बायु का
तेरे ही छत्रछाया में गुलजार जीवन
पशु पक्षी का आवास तुम से ही
तुम से बड़ा इस जगत कोई त्यागी नहीं
संपूर्ण जीव जगत तुम पर ही आश्रित
सर्वस्व निछावर करके भी
कभी कुछ किसी से चाहा नहीं
स्वार्थ में अंधा मानव किया
तुम्हारा भरपूर दोहन
मानव ने अपनी ही विनाश का पटकथा लिख चुका
अब भी समय है चेत जाओ मूर्ख मानव
प्रत्येक मानव का अब पुनीत कर्तव्य
वृक्षारोपण से ही कल्याण संपूर्ण विश्व का !

                      ~ © Sachin kumar

   
    

उन्मुक्त उसका प्रेम

 मुक होकर भी उन्मुक्त उसका प्रेम है अपलक निहारते ही  खुशियों की तरंग स्पंदित कर जाती है,  निस्वार्थपुर्ण उसका सारा जीवन इस धरा पर तू ही  तो ...